sans title

Monday, July 30, 2007

आवारा सजदे

अपनी लाश आप उठाना कोई आसान नहीं
दस्त-ओ-बाजू मेरे नाकारा हुए जाते हैं
जिन से हर दौर में चमकी है तुम्हारी दहलीज़
आज सजदे वोही आवारा हुये जाते हैं

दूर मंज़िल थी मगर ऐसी भी कुछ दूर ना थी
लेके फिरती रही वहशत मुझको
एक ज़ख्म ऐसा ना खाया कि बहार आ जाती
दत तक लेके गया शौक़-ए-शहादत मुझको

राह में टूट गय पाँव तो मालूम हुआ
जुज़ मेरे और मेरा रहनुमा कोई नहीं
एक के बाद एक खुदा चला आता था
कह दिया अक्ल ने तंग आके, "खुदा कोई नहीं"
  
 

Thursday, July 12, 2007


आदर्श प्रेम - हरिवंश राय बच्चन

प्यार किसी को करना लेकिन
कहकर उसे बताना क्या
अपने को अर्पण करना पर
और को अपनाना क्या

गुण का ग्राहक बनना लेकिन
गाकर उसे सुनाना क्या
मन के कल्पित भावो से
औरो को भ्रम में लाना क्या

ले लेना सुगंध सुमनों कि
पर तोड़ उन्हें मुरझाना क्या
प्रेम हार पहनाना लेकिन
प्रेम पाश फैलाना कया

त्याग अंक में पले प्रेम शिशु
उनमें स्वार्थ बताना क्या
देकर ह्रदय ह्रदय पाने कि
आशा व्यर्थ लगाना क्या